ज्यादातर बैंक दो तरह से होम लोन देते हैं. इसमें पहला निश्चित ब्याज दर और दूसरा फ्लोटिंग ब्याज दर है
जब बैंक या फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन से बिल्डर को पूरा लोन डिस्बर्स यानी लोन की पूरी एमाउंट मिल जाती है तब इएमआइ शरु होता है.
बैंक होम लोन देते समय आपकी इनकम प्रुफ, क्रेडिट हिस्ट्री, इंटरनल ड्यू डिजिजंस देखकर ही लोन मंजूर करती है.
Home Loan Interest: होमलोन का टेन्योर सिर्फ इस वजह से न बढ़वाएं कि आपकी मंथली ईएमआई कम हो जाएगी. इससे आपको फौरी तौर पर तो राहत मिल सकती है.
लोन का गारंटर उस शख्स को कहा जाता है, जिसपर कर्जदार के कर्ज नहीं चुकाने की हालत में कर्ज चुकाने की कानूनी जिम्मेदारी होती है.
प्री-अप्रूव्ड लोन की वैलिडिटी के दौरान लोन की राशि, अवधि और ब्याज दर तय हो जाती है, लेकिन ये सिर्फ अनुमानित होती है.
लोन-टू-वैल्यू रेशियो का मतलब है कि किसी प्रॉपर्टी की तय कीमत का कितना फीसदी आपको लोन के रूप में मिलेगा.
वास्तव में आपकी हर महीने की आमदनी के हिसाब से आपकी री पेमेंट कैपिसिटी तय की जाती है और उसके हिसाब से आपको लोन देने का फैसला किया जाता है.
कम उम्र में यानी 20 से 30 साल के बीच ही अगर यह काम कर लिया जाए तो इसके कर्इ फायदे हैं. इससे आपको होम लोन की किस्त चुकाने के लिए ज्यादा समय मिल जाता है
यूनियन बैंक ने होम लोन की ब्याज दर को 6.5% के साइकोलॉजिकल लेवल से भी नीचे 6.4% पर ला दिया है. इससे बैंकों के बीच रेट और घटाने की होड़ लग सकती है